रूप सौन्दर्य को देखकर जब ह्रदय झंकृत होकर मुग्ध हो जाता है तब प्रेम का प्रादुर्भाव होता है। परन्तु इस तरह उत्पन्न प्रेम रुपी बल्ब फ्यूज भी जल्दी होता है। क्योंकि प्रेम बाह्य न होकर आंतरिक तत्व है। अगर इसकी तुलना किसी लौकिक वस्तु से की जाती है तो यह उसी प्रकार होगा जिस प्रकार सूर्य को दीपक दिखाना।
यह एक असाध्य रोग है और रोगियों की संख्या, जनसँख्या दर से कई गुना अधिक गति से बढ़ रही है। इस ने नर तो क्या नारायणों को भी नहीं छोड़ा। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या इसकी औषधि कभी उपलब्ध हो पायेगी?
- आलोक शुक्ला
प्रेम की औसधी तो प्रेम ही है
ReplyDeleteऔर कौन चाहता है इस रोग से निकलना,जीवन का स्पंदन भी तो इसी से ही है...
प्रेम के डाक्टर दवा तो बताओं इस रोग की असाध्य नहीं हैं यह रोग
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